Durga kavach in Hindi Lyrics | Durga Kavach PDF

Durga kavach in Hindi Lyrics | Durga Kavach PDF:  नमस्कार दोस्तों! इस पोस्ट में आपको Durga Kavach PDF और Durga Kavach Lyrics उपलब्ध करवाने जा रहे हे। यह से आप बड़ी आसानी से Durga Kavach PDF को डाउनलोड कर पायंगे और साथ ही Durga Kavach Lyrics को पढ़ पायंगे। इस पोस्ट में आपको Durga Kavach को पढ़े और माँ दुर्गा की पूजा करने से होने वाले लाभों के बारे में भी बताया गया हे। 

दुर्गा कवच एक पवित्र भजन  है जो दुर्गा माता को समर्पित है, जिन्हें हिंदू धर्म दिव्य शक्ति और स्त्री ऊर्जा के अवतार के रूप में पूजता है। दुर्गा कवच का पाठ करने से नकारात्मक उर्जाये, बाधाओं या खतरों से सुरक्षा मिलती हे।  दुर्गा कवच, देवी दुर्गा को समर्पित एक हिंदू प्रार्थना है,

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Durga kavach Lyrics

।। श्री दुर्गा कवच।।

॥अथ श्री देव्याः कवचम्॥

ॐ अस्य श्रीचण्डीकवचस्य ब्रह्मा ऋषिः, अनुष्टुप् छन्दः,
चामुण्डा देवता, अङ्गन्यासोक्तमातरो बीजम्, दिग्बन्धदेवतास्तत्त्वम्,
श्रीजगदम्बाप्रीत्यर्थे सप्तशतीपाठाङ्गत्वेन जपे विनियोगः।

ॐ नमश्‍चण्डिकायै॥

मार्कण्डेय उवाच

ॐ यद्‌गुह्यं परमं लोके सर्वरक्षाकरं नृणाम्।
यन्न कस्यचिदाख्यातं तन्मे ब्रूहि पितामह॥१॥


ब्रह्मोवाच

अस्ति गुह्यतमं विप्र सर्वभूतोपकारकम्।
देव्यास्तु कवचं पुण्यं तच्छृणुष्व महामुने॥२॥

प्रथमं शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।
तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ॥३


पञ्चमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।
सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम्॥४॥

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गाः प्रकीर्तिताः।
उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना॥५॥


अग्निना दह्यमानस्तु शत्रुमध्ये गतो रणे।
विषमे दुर्गमे चैव भयार्ताः शरणं गताः॥६॥

न तेषां जायते किंचिदशुभं रणसंकटे।
नापदं तस्य पश्यामि शोकदुःखभयं न हि॥७॥


यैस्तु भक्त्या स्मृता नूनं तेषां वृद्धिः प्रजायते।
ये त्वां स्मरन्ति देवेशि रक्षसे तान्न संशयः॥८॥

प्रेतसंस्था तु चामुण्डा वाराही महिषासना।
ऐन्द्री गजसमारुढा वैष्णवी गरुडासना॥९॥


माहेश्‍वरी वृषारुढा कौमारी शिखिवाहना।
लक्ष्मीः पद्मासना देवी पद्महस्ता हरिप्रिया॥१०॥

श्‍वेतरुपधरा देवी ईश्‍वरी वृषवाहना।
ब्राह्मी हंससमारुढा सर्वाभरणभूषिता॥११॥


इत्येता मातरः सर्वाः सर्वयोगसमन्विताः।
नानाभरणशोभाढ्या नानारत्नोपशोभिताः॥१२॥

दृश्यन्ते रथमारुढा देव्यः क्रोधसमाकुलाः।
शङ्खं चक्रं गदां शक्तिं हलं च मुसलायुधम्॥१३॥


खेटकं तोमरं चैव परशुं पाशमेव च।
कुन्तायुधं त्रिशूलं च शार्ङ्गमायुधमुत्तमम्॥१४॥

दैत्यानां देहनाशाय भक्तानामभयाय च।
धारयन्त्यायुधानीत्थं देवानां च हिताय वै॥१५॥


नमस्तेऽस्तु महारौद्रे महाघोरपराक्रमे।
महाबले महोत्साहे महाभयविनाशिनि॥१६॥

त्राहि मां देवि दुष्प्रेक्ष्ये शत्रूणां भयवर्धिनि।
प्राच्यां रक्षतु मामैन्द्री आग्नेय्यामग्निदेवता॥१७॥


दक्षिणेऽवतु वाराही नैर्ऋत्यां खड्गधारिणी।
प्रतीच्यां वारुणी रक्षेद् वायव्यां मृगवाहिनी॥१८॥

उदीच्यां पातु कौमारी ऐशान्यां शूलधारिणी।
ऊर्ध्वं ब्रह्माणि मे रक्षेदधस्ताद् वैष्णवी तथा॥१९॥


एवं दश दिशो रक्षेच्चामुण्डा शववाहना।
जया मे चाग्रतः पातु विजया पातु पृष्ठतः॥२०॥

अजिता वामपार्श्वे तु दक्षिणे चापराजिता।
शिखामुद्योतिनि रक्षेदुमा मूर्ध्नि व्यवस्थिता॥२१॥


मालाधरी ललाटे च भ्रुवौ रक्षेद् यशस्विनी।
त्रिनेत्रा च भ्रुवोर्मध्ये यमघण्टा च नासिके॥२२॥

शङ्खिनी चक्षुषोर्मध्ये श्रोत्रयोर्द्वारवासिनी।
कपोलौ कालिका रक्षेत्कर्णमूले तु शांकरी॥२३॥


नासिकायां सुगन्धा च उत्तरोष्ठे च चर्चिका।
अधरे चामृतकला जिह्वायां च सरस्वती॥२४॥

दन्तान् रक्षतु कौमारी कण्ठदेशे तु चण्डिका।
घण्टिकां चित्रघण्टा च महामाया च तालुके ॥२५॥


कामाक्षी चिबुकं रक्षेद् वाचं मे सर्वमङ्गला।
ग्रीवायां भद्रकाली च पृष्ठवंशे धनुर्धरी॥२६॥

नीलग्रीवा बहिःकण्ठे नलिकां नलकूबरी।
स्कन्धयोः खङ्‍गिनी रक्षेद् बाहू मे वज्रधारिणी॥२७॥


हस्तयोर्दण्डिनी रक्षेदम्बिका चाङ्गुलीषु च।
नखाञ्छूलेश्‍वरी रक्षेत्कुक्षौ रक्षेत्कुलेश्‍वरी॥२८॥

स्तनौ रक्षेन्महादेवी मनः शोकविनाशिनी।
हृदये ललिता देवी उदरे शूलधारिणी॥२९॥


नाभौ च कामिनी रक्षेद् गुह्यं गुह्येश्‍वरी तथा।
पूतना कामिका मेढ्रं गुदे महिषवाहिनी ॥३०॥

कट्यां भगवती रक्षेज्जानुनी विन्ध्यवासिनी।
जङ्घे महाबला रक्षेत्सर्वकामप्रदायिनी ॥३१॥


गुल्फयोर्नारसिंही च पादपृष्ठे तु तैजसी।
पादाङ्गुलीषु श्री रक्षेत्पादाधस्तलवासिनी॥३२॥

नखान् दंष्ट्राकराली च केशांश्‍चैवोर्ध्वकेशिनी।
रोमकूपेषु कौबेरी त्वचं वागीश्‍वरी तथा॥३३॥


रक्तमज्जावसामांसान्यस्थिमेदांसि पार्वती।
अन्त्राणि कालरात्रिश्‍च पित्तं च मुकुटेश्‍वरी॥३४॥

पद्मावती पद्मकोशे कफे चूडामणिस्तथा।
ज्वालामुखी नखज्वालामभेद्या सर्वसंधिषु॥३५॥


शुक्रं ब्रह्माणि मे रक्षेच्छायां छत्रेश्‍वरी तथा।
अहंकारं मनो बुद्धिं रक्षेन्मे धर्मधारिणी॥३६॥

प्राणापानौ तथा व्यानमुदानं च समानकम्।
वज्रहस्ता च मे रक्षेत्प्राणं कल्याणशोभना॥३७॥


रसे रुपे च गन्धे च शब्दे स्पर्शे च योगिनी।
सत्त्वं रजस्तमश्‍चैव रक्षेन्नारायणी सदा॥३८॥

आयू रक्षतु वाराही धर्मं रक्षतु वैष्णवी।
यशः कीर्तिं च लक्ष्मीं च धनं विद्यां च चक्रिणी॥३९॥


गोत्रमिन्द्राणि मे रक्षेत्पशून्मे रक्ष चण्डिके।
पुत्रान् रक्षेन्महालक्ष्मीर्भार्यां रक्षतु भैरवी॥४०॥

पन्थानं सुपथा रक्षेन्मार्गं क्षेमकरी तथा।
राजद्वारे महालक्ष्मीर्विजया सर्वतः स्थिता॥४१॥

रक्षाहीनं तु यत्स्थानं वर्जितं कवचेन तु।
तत्सर्वं रक्ष मे देवि जयन्ती पापनाशिनी॥४२॥

पदमेकं न गच्छेत्तु यदीच्छेच्छुभमात्मनः।
कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति॥४३॥


तत्र तत्रार्थलाभश्‍च विजयः सार्वकामिकः।
यं यं चिन्तयते कामं तं तं प्राप्नोति निश्‍चितम्।
परमैश्‍वर्यमतुलं प्राप्स्यते भूतले पुमान्॥४४॥

निर्भयो जायते मर्त्यः संग्रामेष्वपराजितः।
त्रैलोक्ये तु भवेत्पूज्यः कवचेनावृतः पुमान्॥४५॥


इदं तु देव्याः कवचं देवानामपि दुर्लभम् ।
यः पठेत्प्रयतो नित्यं त्रिसन्ध्यं श्रद्धयान्वितः॥४६॥

दैवी कला भवेत्तस्य त्रैलोक्येष्वपराजितः।
जीवेद् वर्षशतं साग्रमपमृत्युविवर्जितः। ४७॥


नश्यन्ति व्याधयः सर्वे लूताविस्फोटकादयः।
स्थावरं जङ्गमं चैव कृत्रिमं चापि यद्विषम्॥४८॥

अभिचाराणि सर्वाणि मन्त्रयन्त्राणि भूतले।
भूचराः खेचराश्‍चैव जलजाश्‍चोपदेशिकाः॥४९॥


सहजा कुलजा माला डाकिनी शाकिनी तथा।
अन्तरिक्षचरा घोरा डाकिन्यश्‍च महाबलाः॥५०॥

ग्रहभूतपिशाचाश्‍च यक्षगन्धर्वराक्षसाः।
ब्रह्मराक्षसवेतालाः कूष्माण्डा भैरवादयः ॥५१॥


नश्यन्ति दर्शनात्तस्य कवचे हृदि संस्थिते।
मानोन्नतिर्भवेद् राज्ञस्तेजोवृद्धिकरं परम्॥५२॥

यशसा वर्धते सोऽपि कीर्तिमण्डितभूतले।
जपेत्सप्तशतीं चण्डीं कृत्वा तु कवचं पुरा॥५३॥


यावद्भूमण्डलं धत्ते सशैलवनकाननम्।
तावत्तिष्ठति मेदिन्यां संततिः पुत्रपौत्रिकी॥५४॥

देहान्ते परमं स्थानं यत्सुरैरपि दुर्लभम्।
प्राप्नोति पुरुषो नित्यं महामायाप्रसादतः॥५५॥


लभते परमं रुपं शिवेन सह मोदते॥ॐ॥५६॥

इति देव्याः कवचं सम्पूर्णम्।

Durga Kavach benefits | दुर्गा कवच पढ़ने के लाभ 

दुर्गा कवच हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण स्थान रखता है और इसका पाठ अक्सर देवी दुर्गा का आह्वान करने और उनकी दिव्य सुरक्षा पाने के लिए बड़ी श्रद्धा के साथ किया जाता है। दुर्गा कवच का पाठ करने से भक्त को कई लाभ हो सकते हैं।  

  • shri Durga Kavach नकारात्मक ऊर्जा, काले जादू और बुरी आत्माओं के खिलाफ एक प्रभावी सुरक्षा कवच के रूप में कार्य करता है। ऐसा कहा जाता है कि यह अपने भक्त के चारों ओर एक सुरक्षात्मक आभा उत्पन्न करता है, जिससे उसे किसी भी खतरे या दुर्भावनापूर्ण इरादों से बचाने में मदद मिलती है।
  • Shri durga kavach paath साहस और शक्ति को प्रेरित करता है। नियमित पाठ से भक्तों को जीवन की चुनौतियों का सामना करने की शक्ति मिलने के साथ-साथ आंतरिक और बाहरी बाधाओं को खत्म करने में मदद मिलती है।  
  • ईमानदारी और भक्ति के साथ दुर्गा कवच का जाप करने से आध्यात्मिक जागरूकता जागृत करने और परमात्मा के साथ संबंध को गहरा करने में मदद मिलती है, जिससे समर्पण, कृतज्ञता और विनम्रता के माध्यम से आंतरिक परिवर्तन होते है।
  • दुर्गा कवच का पाठ करने से भक्तों को देवी दुर्गा की कृपा और आशीर्वाद प्राप्त करने में मदद मिलती है। पौराणिक कथा के अनुसार, उनके उपासकों को उनसे दिव्य मार्गदर्शन, सुरक्षा और धार्मिक इच्छाओं की पूर्ति प्राप्त होती है।

दुर्गा कवच कैसे पढ़ें?

दुर्गा कवच का पाठ करने से पहले सप्तश्लोकी दुर्गा मंत्र से आरंभ करें और असाध्य रोगों की सिथति में देवी कवच ​​का तीन बारउच्चारण करें ।

दुर्गा कवच पढ़ने से क्या फायदा होता है?

 ज्योतिषी आरती दहिया जी के अनुसार, दुर्गा कवच ​​में देवी दुर्गा के उन सभी नामों का विस्तार से वर्णन किया गया है जो आपके शरीर के विभिन्न हिस्सों को सुरक्षा प्रदान करते हैं। ज्योतिषाचार्य आरती दहिया जी के अनुसार दुर्गा कवच का पाठ करने से धन और सौभाग्य की प्राप्ति होती है।  

दुर्गा कवच का पाठ कब करना चाहिए?

अधिकतम लाभ प्राप्त करने के लिए दुर्गा सप्तशती के आरंभ और अंत में Durga kavach ka paath करना चाहिए। यदि संभव हो तो आप प्रतिदिन दुर्गा सप्तशती का पाठ कर सकते हे।  

दुर्गा पाठ कितने दिन का होता है?

भक्तजन नवरात्रि के दौरान हवन, आरती, चालीसा और दुर्गा सप्तशती का पाठ कर पूजा-अर्चना में भाग लेते हैं। धार्मिक मान्यता के अनुसार, जो लोग पूरे नवरात्रि में दुर्गा सप्तशती का पाठ करते हैं, उन्हें अपनी सभी चिंताओं से मुक्ति मिल जाती है क्योंकि अपने भक्तों के कल्याण के लिए माँ के अवतरण का प्रतीक है।

मां दुर्गा को प्रसन्न करने के लिए क्या करना चाहिए?

 

माँ दुर्गा को अपनी भगति से प्रसन्न करने के लिए कई तरीके हैं। जैंसे कि सच्चे मन से माता की भक्ति करना, माता की पूजा करना, माँ दुर्गा के मंत्रो का जप करना , उपवास रखना आदि। 

 

दुर्गा कवच किसने लिखा ?

दुर्गा कवच, ऋषि मार्कंडेय द्वारा लिखा गया था और इसे दुर्गा सप्तशती या देवी महात्म्यम में उलेख किया गया है, जो देवी दुर्गा के कार्यों का सम्मान करने वाला एक प्रतिष्ठित ग्रंथ है। छंदों और मंत्रों से युक्त, जो उनके विभिन्न रूपों और गुणों का सम्मान करते हैं, इसका उद्देश्य स्वयं के भीतर समर्पण, कृतज्ञता और विनम्रता को बढ़ावा देना है जिसके परिणामस्वरूप व्यक्तिगत परिवर्तन होता है।

Durga kavach PDF | Durga Kavach Lyrics

इसका संकलन देवी महात्म्य (जिसे दुर्गा शप्तसती कवच ​​भी कहा जाता है) और मार्कंडेय पुराण सहित विभिन्न प्राचीन हिंदू ग्रंथों पर आधारित है – जो समय के साथ कई संतों और लेखकों द्वारा सदियों से लिखे गए हैं; इसलिए इसकी संपूर्णता का श्रेय केवल किसी एक लेखक को नहीं दिया जा सकता।

दुर्गा कवच का पाठ करना बहुत शुभ माना जाता है और अक्सर इसे देवी दुर्गा के सम्मान में नौ रातों के त्योहार, नवरात्रि के दौरान इसका पाठ किया जाता हे। कहा जाता है कि भक्ति और विश्वास के साथ इसका जाप करने से व्यक्ति को सुरक्षा, साहस, समृद्धि और आध्यात्मिक विकास का आशीर्वाद मिलता है।

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